Aspiration for wealth is Differentiates human from animal

Aspiration for wealth Differentiates human from animal
Aspiration for sustainability differentiates an agrarian folk from a pirate or nomad

Monday, May 3, 2021

भारत में वैक्सीन

यह लेख मेंने १७ जनवरी 2021 को मेंरे प्रायवेट समूह में प्रकाशित किया था; एक मित्रवत सलाह व चैतावनी के रूप में:

कल गुजरे हुए दिन में विश्व भर में साढे 16 हजार से ज्यादा मौतें करोना के कारण हुयी हैं, यह संख्या पिछले पूरे वर्ष में सबसे बड़ी है, इतनी मौतें किसी एक दिन में कभी भी नहीं हुई थी करोना से।

पिछले वर्ष में जब यूरोप में मौतें हो रही थीं, तो हम भारतवासी गर्व कर रहे थे; कि हम तो भारत में रहते हैं, अच्छा है देखो वहां कैसे मर रहे हैं। 

उसके बाद हमारे यहां जब हजार मौतें रोज होने का शुरू हुआ, तो यूरोप और अमेरिका में लोग वापस माल और रेस्टोरेंट में मजे मार रहे थे, क्योंकि उनके यहां पर वह कम हो चुका था।

अब जबकि विश्व भर में इसके कई सारे म्यूटेन्ट उभर कर आ चुके हैं, पर वही पिछले साल जैसे जनवरी-फरवरी में भारत में इतना प्रकोप नहीं हुआ था; आज भी परिस्थिति तकरीबन वैसे ही हो गई है। 

अब जब यूरोप और अमेरिका में मौतों की बाढ़ आई हुई है, हमारे यहां प्रतिदिन पिछले हफ्ते भर से तकरीबन तकरीबन 200 से कम ही मर रहे हैं। 

और हमारे यहां क्रिकेट टूर्नामेंट से लेकर सभी प्रकार के समारोह; जोशो ख़रोश के साथ शुरू होते दिख रहे हैं!

इस आशा में कि अब तो वैक्सीन आ चुका है।

क्या हमें मालूम है कि अपने देश में कुल डेढ़ लाख मौतों में से पचास हजार मौतें अकेले महाराष्ट्र में हुई हैं जबकि वहां की आबादी पूरे देश की 10 वे भाग से भी कम है।  यहां प्रत्येक 10,000 आबादी में से 9700 से ज्यादा व्यक्ति करोना से साफ बच निकले हैं। सिर्फ 300 से कम ही लोगों को करोना ने इनफेक्ट कर पाया था; और उनमें से 9 से भी कम लोगों की मौत हुई थी। 

इसका मतलब यह है की 97% का कुछ भी  बिगाड़ नहीं सका करोना।

अब आते हैं वैक्सीन के ऊपर।

कोई भी वैक्सीन 94, 95 या 96% से अधिक परिणाम दिखाने में सफल नहीं हुआ है।

इसका मतलब समझते हैं हम। 

जब सामान्य परिस्थिति में 100 में से 97 सुरक्षित ही थे अब वैक्सीन लगाकर 100 में से 96 ही सुरक्षित हो पाएंगे मतलब 1% और मरने को तैयार होंगे और हम ढाई से लेकर अब 4% मौत के आंकड़ों को पाना चाह रहे हैं, वैक्सीन लगाकर।

जिस देश में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का हेड ऑफिस है,  इंग्लैंड में जहां प्रति 10000 व्यक्तियों में १३ से ज्यादा लोग प्रतिदिन मर रहे हैं, जबकि संपूर्ण भारत की करोना से औसत मृत्यु दर 10000 में एक के बराबर ही है। 

जब वह कंपनी के वैक्सीन की मदद से अपने देश में अपने नागरिकों को नहीं बचा पा रहे; तो हमारी क्या दशा होने वाली है? 

यह तो अरनबगेट के बाद  सामान्य बेपढ़े को भी समझ में आने वाली बात है कि नहीं?

महाराष्ट्र में करोना से हुई 86% मौतें सिर्फ 50 वर्ष या उससे अधिक आयु समूह के लोगों की।

अर्थात 50 से कम उम्र के व्यक्तियों में करोना के कारण सिर्फ 14% ही मृत्यु दर है। चूकी टीके की शुरुआत हेल्थ वर्कर के द्वारा हुई है जो प्रायः 60 से कम ही उम्र के अधिक रहने वाले हैं अतः हमें अगले 7 हफ्ते तक कुछ भी पता नहीं चलेगा वैक्सीन की परिणाम-कारकता के बारे में। 

अतएव ५ से १५ मार्च के बीच अगर हम अपनी आंखें खुली रखेंगे तो ही अपने टीकाकरण के लिए सही निर्णय ले पाएंगे।

नौकरी की अनिवार्यता व ब्यूरोक्रैसी की हठधर्मिता के चलते उक्त सलाह को नजर अन्दाज कर टीकाकरण का हश्र; नीचे के चार चित्रों, विशेष कर चौथे (मृत्यु-प्रमाणपत्र) से हम समझ सकते हैं


उक्त मृत्यु-प्रमाण पत्र का अवलोकन करने के बाद यदि हम टीकाकरण का निम्नांकित ग्राफ देखें तो 8 मार्च के दिन हम को शुरूआती सर्वाधिक टीकाकरण हुआ दिखता है।
vaccination status in india for covid 19

इसके चार+ हफ्ते बाद अर्थात गुजरे हुए 7 मई 2021 को अभी तक करोना से मृत्यु का आधिकारिक सर्वाधिक बड़ा आंकड़ा (4194) हमारे सामने है।

हमारे देश में 17 जनवरी से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। यदि हम नीचे चित्र के आंकड़े देखें तो 17 जनवरी से 17 मार्च तक कुल 8 हफ्ते में जबकि दूसरा टीका भी लगे तकरीबन 2 हफ्ते हो चुकना प्रारंभ गया था,

हम वास्तव में देश में न्यूनतम मृत्यु दर घोषित कर रहे थे। किंतु ठीक उसके बाद आज पर्यंत हम लगातार उत्तरौत्तर मृत्यु के आंकड़े बढ़ते हुए ही देख रहे हैं।
क्या आज हमारे कोई भी प्रकांडतम वैज्ञानिक, राजनयिक या प्रशासनिक अधिकारी यह आश्वासन दे सकते हैं कि उक्त टीकाकरण ग्राफ के उच्च बिंदुओं के सानुरूप अगले 8 हफ्तों में मृत्यु के आंकड़े भी समानुपातिक नहीं होंगे?
और यदि हम यह नहीं आश्वस्त कर सकते तो फिर व्यर्थ ही इस टीकाकरण अभियान को क्यों प्रचारित और प्रसारित कर इस सदी के भयंकरतम नरसंहार की प्रस्तावना कर रहे हैं?

इस सारी आंकड़ेबाजी को देखने के बाद भी यदि हमारे कुछ भाई टीकाकरण की लाइन में लगने के लिए भीड़ में शामिल होते हैं तो इसे हम वैचारिक दिवालियापन के अलावा क्या समझें?


सरकारी बकवास के कुछ नमूने
1https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe44.pdf
Courtsy: https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_at_Glance/bag6.pdf
Courtsy: https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_at_Glance/bag7.pdf

Do simple math:

112 cr population above 10 year olds X Rs. 150 per vaccine dose X 2 dose = 300*112 = 33600 cr + 1400 cr for infra, logistics and management.

If that much provision is already done then why does any Indian state or any private person need to buy?

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Dr K K Aggarwal @DrKKAggarwal
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New Delhi: Around 80 medical personnel and a surgeon at Delhi's Saroj Super Speciality Hospital have tested positive for the coronavirus over the last month. Dr AK Rawat, the surgeon who was vaccinated, died of COVID-19 on Saturday. He was 58.

"Around 80 medical staff have tested positive between April and May. Dr AK Rawat was my junior, a surgeon... he succumbed to Covid yesterday," the hospital's Chief Medical Officer Dr PK Bhardwaj told NDTV.

Dr Bhardwaj maintained that Dr Rawat was battling on. "He (Dr Rawat) was brave enough, he was fighting. He said 'I shall feel alright, I am vaccinated'," Dr Bhardwaj recounted his last exchange with the surgeon.

Watch specially @.35 & @1.25.


Example of the global dung:

https://twitter.com/NatGeo/status/1391759211663552515

Many scientists see a glimmer of hope in the statistic: 8 percent missing their second dose means 92 percent returned, which is surprisingly high; even though most of those 8% died before their scheduled second dose.....!???