Aspiration for wealth is Differentiates human from animal

Aspiration for wealth Differentiates human from animal
Aspiration for sustainability differentiates an agrarian folk from a pirate or nomad

Saturday, March 18, 2023

क्या हमारा देश भारत भविष्य में कभी अमेरिका की मुद्रा को पीछे छोड़ सकता है, यदि आपका जवाब हाँ है तो कैसे?

  1. भारत, अमेरिका की मुद्रा को; बिलकुल पीछे छोड़ सकता है और वह भी एक दशाब्दि के अंदर ही.
  2. जैसे ही हम ईंधन में आत्मनिर्भर हो जाएं और सारे युवाओं को आर्थिक रूप से काम में समायोजित कर लें, कल्पना करें सिर्फ 9 करोड़ लोग यानी कि 90 मिलियन यानि की हर 15 भारतीय में से एक व्यक्ति; 5 मिलियन भी प्रतिवर्ष बनाने लगें तो 450 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था मात्र 9 करोड लोगों के सहयोग से बनेगी.
  3. बाकी बचे हुए 14 आदमियों में; यह पैसा घूमने पर; अर्थव्यवस्था इसका 18 गुना होने वाली है. ऐसा हमने पहले भी देखा है. (देखें नीचे की सारणी)
  4. यह 18 गुना हो जाता है ₹8100 ट्रिलियन सालाना इकोनामी या ₹81/ डॉलर के हिसाब से 100 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष.
  5. और चूंकी हमारा ईंधन आयात शून्य होगा, तब भी सारी दुनिया को अपने डाइनिंग टेबल पर; हमारे मसाले और मुर्दा मांस के बिना; स्वाद आने वाला नहीं है.
  6. सारी वैश्विक आईटी इंडस्ट्री का, हमारे इंजीनियरों के बिना; काम चलने वाला नहीं है.
  7. जब हमारी आत्मनिर्भरता की स्थिति 99% हो चुकेगी, तो बाकी बचे 1% के लिए; बाकी सारी दुनिया के निर्यातकों को; अपनी मुद्रा को; हम से नीचे ही रखना पड़ेगा; अन्यथा उनकी अर्थव्यवस्था डूबने वाली है; हमारी नहीं.
  8. यह सब संभव बनाने के लिए, ना हमें किसी वैश्विक समुदाय की; ना किसी शासन की; ना ही किसी आयतित तकनीकी की; आवश्यकता है.
  9. बस आवश्यकता है, तो सिर्फ और सिर्फ; हमारे अपने कमिटमेंट की.

    पर अब सवाल यह उठता है कि, 90 मिलियन लोग; 5 मिलियन सालाना बनाएंगे कैसे?

    • क्या आपको मालूम है कोकोकोला, आप ही के देश का पानी & शकर; आप ही के देश में बनी गाड़ीयों द्वारा; आप ही के देश में बनी हुई दुकानों पर बेच कर; कैसे पैसा बनाता है?
    • "इस प्रकार बनाए गए पैसे का कारण होता है; बौद्धिक संपदा में निवेश."
    • यही बौद्धिक संपदा में निवेश, पिछले 10 वर्ष से ईकोभारत में; हम कर रहे हैं. और इसमें लाभार्थी भागीदार; आप भी बन सकते हैं; आज ही अभी से.

    क्या आप, अपने आप को; अन्य 14 भारतीयों की तुलना में; आर्थिक रूप से अधिक सुदृढ़ बनाना चाहते हैं?

    यदि हां, तो आज ही निर्णय लें; और आगे बढ़ें

    .

    फुटनोट

सड़क और टायर

आपने पिछली बार कब किसी सड़क को फिर से बनते हुए देखा है? 

आपने पिछली बार कब अपने वाहन में पुराने टायरों की जगह नए टायरों को लगवाया?
जब आप अपना घर खरीदने या किराए पर लेने या रहने जाते हैं, तो आप अपने उस घर से सड़क तक पहुंच देखते हैं कि नहीं? 
क्या आपको पता है कि आपके घिसते हुए टायरों के फटे हुए कण और टूटी पुरानी सड़क कहाँ चली गई? 

क्या वे सड़क के वातावरण में नहीं चले गए?
क्या वे कण, सड़क के आस-पास जाकर नहीं बैठे?

क्या हम समझ सकते हैं, कि सड़क के नज़दीकी घर के पर्यावरण में जो भी कण हैं; वे हमारे श्वसन प्रणाली में भी जा रहे हैं कि नहीं?

क्या उसकी वजह से हमें; खांसी, छींक, गले में खराश, दमा, सिरदर्द और कैंसर तक की सारी बीमारियां नहीं हो रहीं?

Sunday, February 13, 2022

Lata Mangeshkar caught COVID and succumbed to multiple organ failure


Despite April 16, 2021 11:59 IST Lata Mangeshkar, 91, is all set to take the Covid vaccine this week.

All other eligible members of the Mangeshkar family have already taken the vaccine.

"Bas main baaki reh gayi hoon (only I remained)," says Lataji.

The Bharat Ratna had been been so far excluded from the jab club because of her frail health. She was hospitalised for a severe lung infection in December 2019 and has been advised extra precaution since then.

"But now my personal doctor whom I trust blindly says it is best that I take the vaccination since it is absolutely safe," she says.

"I advise everyone out there eligible for the vaccination to go fo it. I am told it does not ensure complete immunity from the virus. But it minimises the impact considerably if you are unfortunate enough to get the virus," she adds.

"It is a very bad situation out there," the Singing Legend says, sounding very distressed. "I urge all people to follow the guidelines."

"Aab yeh doosron ke ghar ki aafat nahin hai yeh ham sab ke ghar aa chuki hai (covid is not other people's crisis anymore it has now reached all our homes)."

Lataji's advice" "Stay home, watch movies, listen to songs, yes mine too."

Feature Presentation: Ashish Narsale/Rediff.com

Lata Mangeshkar was admitted to Mumbai's Breach Candy Hospital on January 8 after being diagnosed with COVID-19 and pneumonia. She showed mild symptoms of COVID-19.

On January 28, she was taken off the ventilator after showing signs of improvement.

On Saturday February 5, her condition worsened and she was again admitted to hospital and was back on ventilator support. Due to her health conditions she underwent aggressive therapies before succumbing to multiple organ failure.

She has died because of multi-organ failure after more than 28 days of hospitalisation post COVID-19.Feb 6, 2022

Monday, May 3, 2021

भारत में वैक्सीन

यह लेख मेंने १७ जनवरी 2021 को मेंरे प्रायवेट समूह में प्रकाशित किया था; एक मित्रवत सलाह व चैतावनी के रूप में:

कल गुजरे हुए दिन में विश्व भर में साढे 16 हजार से ज्यादा मौतें करोना के कारण हुयी हैं, यह संख्या पिछले पूरे वर्ष में सबसे बड़ी है, इतनी मौतें किसी एक दिन में कभी भी नहीं हुई थी करोना से।

पिछले वर्ष में जब यूरोप में मौतें हो रही थीं, तो हम भारतवासी गर्व कर रहे थे; कि हम तो भारत में रहते हैं, अच्छा है देखो वहां कैसे मर रहे हैं। 

उसके बाद हमारे यहां जब हजार मौतें रोज होने का शुरू हुआ, तो यूरोप और अमेरिका में लोग वापस माल और रेस्टोरेंट में मजे मार रहे थे, क्योंकि उनके यहां पर वह कम हो चुका था।

अब जबकि विश्व भर में इसके कई सारे म्यूटेन्ट उभर कर आ चुके हैं, पर वही पिछले साल जैसे जनवरी-फरवरी में भारत में इतना प्रकोप नहीं हुआ था; आज भी परिस्थिति तकरीबन वैसे ही हो गई है। 

अब जब यूरोप और अमेरिका में मौतों की बाढ़ आई हुई है, हमारे यहां प्रतिदिन पिछले हफ्ते भर से तकरीबन तकरीबन 200 से कम ही मर रहे हैं। 

और हमारे यहां क्रिकेट टूर्नामेंट से लेकर सभी प्रकार के समारोह; जोशो ख़रोश के साथ शुरू होते दिख रहे हैं!

इस आशा में कि अब तो वैक्सीन आ चुका है।

क्या हमें मालूम है कि अपने देश में कुल डेढ़ लाख मौतों में से पचास हजार मौतें अकेले महाराष्ट्र में हुई हैं जबकि वहां की आबादी पूरे देश की 10 वे भाग से भी कम है।  यहां प्रत्येक 10,000 आबादी में से 9700 से ज्यादा व्यक्ति करोना से साफ बच निकले हैं। सिर्फ 300 से कम ही लोगों को करोना ने इनफेक्ट कर पाया था; और उनमें से 9 से भी कम लोगों की मौत हुई थी। 

इसका मतलब यह है की 97% का कुछ भी  बिगाड़ नहीं सका करोना।

अब आते हैं वैक्सीन के ऊपर।

कोई भी वैक्सीन 94, 95 या 96% से अधिक परिणाम दिखाने में सफल नहीं हुआ है।

इसका मतलब समझते हैं हम। 

जब सामान्य परिस्थिति में 100 में से 97 सुरक्षित ही थे अब वैक्सीन लगाकर 100 में से 96 ही सुरक्षित हो पाएंगे मतलब 1% और मरने को तैयार होंगे और हम ढाई से लेकर अब 4% मौत के आंकड़ों को पाना चाह रहे हैं, वैक्सीन लगाकर।

जिस देश में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का हेड ऑफिस है,  इंग्लैंड में जहां प्रति 10000 व्यक्तियों में १३ से ज्यादा लोग प्रतिदिन मर रहे हैं, जबकि संपूर्ण भारत की करोना से औसत मृत्यु दर 10000 में एक के बराबर ही है। 

जब वह कंपनी के वैक्सीन की मदद से अपने देश में अपने नागरिकों को नहीं बचा पा रहे; तो हमारी क्या दशा होने वाली है? 

यह तो अरनबगेट के बाद  सामान्य बेपढ़े को भी समझ में आने वाली बात है कि नहीं?

महाराष्ट्र में करोना से हुई 86% मौतें सिर्फ 50 वर्ष या उससे अधिक आयु समूह के लोगों की।

अर्थात 50 से कम उम्र के व्यक्तियों में करोना के कारण सिर्फ 14% ही मृत्यु दर है। चूकी टीके की शुरुआत हेल्थ वर्कर के द्वारा हुई है जो प्रायः 60 से कम ही उम्र के अधिक रहने वाले हैं अतः हमें अगले 7 हफ्ते तक कुछ भी पता नहीं चलेगा वैक्सीन की परिणाम-कारकता के बारे में। 

अतएव ५ से १५ मार्च के बीच अगर हम अपनी आंखें खुली रखेंगे तो ही अपने टीकाकरण के लिए सही निर्णय ले पाएंगे।

नौकरी की अनिवार्यता व ब्यूरोक्रैसी की हठधर्मिता के चलते उक्त सलाह को नजर अन्दाज कर टीकाकरण का हश्र; नीचे के चार चित्रों, विशेष कर चौथे (मृत्यु-प्रमाणपत्र) से हम समझ सकते हैं


उक्त मृत्यु-प्रमाण पत्र का अवलोकन करने के बाद यदि हम टीकाकरण का निम्नांकित ग्राफ देखें तो 8 मार्च के दिन हम को शुरूआती सर्वाधिक टीकाकरण हुआ दिखता है।
vaccination status in india for covid 19

इसके चार+ हफ्ते बाद अर्थात गुजरे हुए 7 मई 2021 को अभी तक करोना से मृत्यु का आधिकारिक सर्वाधिक बड़ा आंकड़ा (4194) हमारे सामने है।

हमारे देश में 17 जनवरी से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। यदि हम नीचे चित्र के आंकड़े देखें तो 17 जनवरी से 17 मार्च तक कुल 8 हफ्ते में जबकि दूसरा टीका भी लगे तकरीबन 2 हफ्ते हो चुकना प्रारंभ गया था,

हम वास्तव में देश में न्यूनतम मृत्यु दर घोषित कर रहे थे। किंतु ठीक उसके बाद आज पर्यंत हम लगातार उत्तरौत्तर मृत्यु के आंकड़े बढ़ते हुए ही देख रहे हैं।
क्या आज हमारे कोई भी प्रकांडतम वैज्ञानिक, राजनयिक या प्रशासनिक अधिकारी यह आश्वासन दे सकते हैं कि उक्त टीकाकरण ग्राफ के उच्च बिंदुओं के सानुरूप अगले 8 हफ्तों में मृत्यु के आंकड़े भी समानुपातिक नहीं होंगे?
और यदि हम यह नहीं आश्वस्त कर सकते तो फिर व्यर्थ ही इस टीकाकरण अभियान को क्यों प्रचारित और प्रसारित कर इस सदी के भयंकरतम नरसंहार की प्रस्तावना कर रहे हैं?

इस सारी आंकड़ेबाजी को देखने के बाद भी यदि हमारे कुछ भाई टीकाकरण की लाइन में लगने के लिए भीड़ में शामिल होते हैं तो इसे हम वैचारिक दिवालियापन के अलावा क्या समझें?


सरकारी बकवास के कुछ नमूने
1https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe44.pdf
Courtsy: https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_at_Glance/bag6.pdf
Courtsy: https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_at_Glance/bag7.pdf

Do simple math:

112 cr population above 10 year olds X Rs. 150 per vaccine dose X 2 dose = 300*112 = 33600 cr + 1400 cr for infra, logistics and management.

If that much provision is already done then why does any Indian state or any private person need to buy?

2
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Dr K K Aggarwal @DrKKAggarwal
4.
5.

New Delhi: Around 80 medical personnel and a surgeon at Delhi's Saroj Super Speciality Hospital have tested positive for the coronavirus over the last month. Dr AK Rawat, the surgeon who was vaccinated, died of COVID-19 on Saturday. He was 58.

"Around 80 medical staff have tested positive between April and May. Dr AK Rawat was my junior, a surgeon... he succumbed to Covid yesterday," the hospital's Chief Medical Officer Dr PK Bhardwaj told NDTV.

Dr Bhardwaj maintained that Dr Rawat was battling on. "He (Dr Rawat) was brave enough, he was fighting. He said 'I shall feel alright, I am vaccinated'," Dr Bhardwaj recounted his last exchange with the surgeon.

Watch specially @.35 & @1.25.


Example of the global dung:

https://twitter.com/NatGeo/status/1391759211663552515

Many scientists see a glimmer of hope in the statistic: 8 percent missing their second dose means 92 percent returned, which is surprisingly high; even though most of those 8% died before their scheduled second dose.....!???


Saturday, April 3, 2021

Congratulations…! 

To every Indian.......! 

Now we are at the top of the global chart in the spiraling of pandemics.



On 15th august 1947 we got freedom from our invaders.


But do we not got invaded in our brain; a fear (of pandemic) and in our bodies a host of social as well as occupational diseases like: myopia, back pain, diabetics etc?


Do we not need to do our "2-2 हाथ" with all these invaders today?


Do we know when we elected our career towards a sedentary life we had invited all this as a nucleus of current outcome?


Had we observed that when we had seen last year ‘hoards of non sedentary people walking to their respective native places’ and not able to spread the pandemic in the rural depths of our nation.


From that incident can we not pick the अन्तर्दृष्टि of; getting exposed to the sun with our scantily covered body (like into the bermuda/ t-shirt or just nougaja sari) along with a missionary zeal of walking?


We have exactly 498 days to the Platinum Jubilee of our freedom.


If we start practicing walking or slow running by a daily cumulative increment of just 100 metre we could easily (younger chap less than 50 year olds) reach a formidable long distance walk/run on that auspicious day.


Imagine if a hoard of us crossed a walk/run distance of more than 40 kilometres on that day through the length and breadth of our nation.

What will be the health and endurance level of us; citizen’s? 

and the global image of our nation?


Mind you that the first guy; who ran just 40 kilometres in a day, died at the finishing of that run. 

But thanks to our DNA and the preparation of 450 + days most of us will reach the zenith of our health and self confidence along with nation's pride.


To participate and give a moral boost to this endeavor; we will organise a run next year, in the first week of this month (April 2022).

Top ten finishers of the race in every city, town and village will win an


Saturday, May 2, 2020

भारत में अमीर कैसे बना जा सकता है?

  1. आपके जैसे बचपन से लेकर अभी कुछ वर्ष पूर्व तक मेरी भी यही ख्वाइश थी.
  2. इस ख्वाइश के रहते पिछली कुछ शताब्दियों में जितना हमने भोगा है शायद ही किसी ने भोगा; नही कहूंगा क्योंकि इतिहास से लेकर वर्तमान तक हमारे पास उदहारण भरे पढे हैं इसके.
  3. अस्तु हमें इस सवाल का जवाब जानने के पूर्व थोड़े विषयांतर से यह जानना ज्यादा जरूरी है कि क्यों हमें यह ख्वाइश पैदा होती है, इसके उदगम के कारण क्या हैं? पर इसके भी पूर्व थोड़ा सा मेरे बचपन की फेण्टेसी और उसके उद्गम के तारतम्य के बारे में जान लेंगे तो आगे पढ़ना सुगम हो जायेगा.
  4. जब मैं सिर्फ पांचएक वर्ष का रहा होऊँगा तब मुझे मेंरी मां के आँचल से छीनकर विद्यालय भेजने की कवायद में मुझे बाजार ले जाया गया औऱ शायद एक सिक्के भर का कलाकन्द हलवाई की दूकान से खरीद कर खिलाया गया. मुझे बताया गया कि यदि मैं स्कूल जाऊँगा तो मुझे रोज एक सिक्का मिला करेगा जिसके द्वारा मैं जो चाहूं खरीद कर खा सकूंगा.
  5. इस घटना के पूर्व के मेरे जीवन में तो मेंने कभी कलाकन्द चखा था सिक्के की महत्ता मालूम थी क्योंकि इसके पहिले मेरे भी जीवन के आरम्भिक लगभग 1800 दिन ऐसे ही बीते थे जैसे अन्य सभी जीव जन्तुओं की अगली पीढी तैयार होती है; बिना अर्थशास्त्र से परिचय के, सिर्फ मां की देखभाल की दम पर. (आज की शहरी पीढी के लिये कलाकन्द पशुओं के दुग्ध में चीनी मिलाकर लौहे की कढाई मैं उबाल - उबाल कर मावे जितनी घनता होने तक पकाकर उथले बरतन में फैला कर पूरा ठण्डा होने के बाद परौसी जाने वाली एक मिठायी है जिसके बारे में विकीपीडिया भी झूटी जानकारी परोस रहा है.)
  6. इस घटना के कुछ दिनों बाद सिक्के मिलने बन्द हो गये पर स्कूल जाने की मजबूरी पल्ले पड गयी. ऐसी परिस्थिती मैं बस एक ही धुन गले लग गयी कि मैं बड़ा होकर बोरी भर के सिक्के घर लाऊँगा. (जूट के बोरों में भर के साल में एक बार गेहूं घर में आते देखे होने के कारण बोरी से तब तक पहचान हो चुकी थी)
  7. बचपन की इस एक सनक के परिणाम स्वरूप मुझे अब सुबह उठकर या तो घण्टों मेराथान प्रेक्टिस हैतु दौड़ना पढता है या साधारण शहरी मानव की भाषा मैं भयंकरतम बन्दरनुमा एक्सरसाइज या व्यायाम इस लिये करना पढता है कि कही मधुमेह या दिल के दौरे शुरू हों जायें; यह जवाब या अन्य पुस्तकों का लेखन इसलिये करना पडता है कि हथेलियां गठिया ग्रस्त हों जायें. लम्बे समय तक सोना इसलिये पडता है कि रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. बाकी सारे समय घरघुस्सू इसलिये बना रहने पड़ता है कि कौई अकारण ईर्ष्या द्वेष करने लग जाये, कम्पनियां और संस्थायें इसलिये बनानी पढती हैं कि कही अलजाइमर के शिकार हो जांये.
  8. सामान्यतया 95% आबादी को एसे फालतू काम करने की तो जरूरत पढती है हि इच्छा या समय या आवश्यक्ता रहती है लोकल ट्रेन पकड़ने की जद्दोजहद और दो घण्टे रोज की उसमें सफर या छह-सात घण्टों की रोजी रोटी की फिक्र औऱ उठापटक शरीर औऱ खौपड़ी दौनों को चुस्त दुरुस्त तरोताजा बनाये ही रखती है.
  9. अब तक का बकरापन निश्चित रूप से आपको विचलित करता होगा सो अब हम आते हैं अपने क्रमांकके मुद्दे पर "क्यों हमें यह ख्वाइश पैदा होती है, इसके उदगम के कारण क्या हैं?"
  10. हालाकि क्रमांक 4 से 8 की कथा के बाद यह कौई छिपी हुई बात नहीं रह गई कि यह सपना अधिकांशतः पारिवारिक धृतराष्ट्रीय सौच (हमारी शिक्षा के बारे में) का परिणाम होती है जहां हम इतने आत्माभिमानी बन जाते हैं कि समाज की तो छो़ड़ें अपने ही सगे सम्बन्धियों और उनके नम्बरों से आगे निकलने और उनकी भौतिक स्थिति से अधाधुन्द तुलना के जाल में फस जाते हैं.
  11. हममे से अधकांश की अमीरी की परिभाषा में पड़ौसी की बड़ी कार या कोठी या विदेश में पढते उनके बच्चे या कौई धूमधाम से हुयी शादी से आगे का शायद ही कुछ आता हो. बिलगेटे या जेफबीजौ को तो जाने दो हमें यह भी पता होना विशेष कक्षा में पहुंचा देगा कि बिलियन में बिन्दी कितनी होती हैं औऱ अपने राज्य में वैसे बिलियनियर कौन हैं जिन्हें हम दूर से भी जानते भर हों सिवा बाबाओं और राजनीतिज्ञों के?
  12. सो जब तक हमारी परिभाषा ही दुरुस्त हो हमारा सवाल हमें कहां पहुंचायेगा? पर यह तो ऐसा हो गया कि खौदा पहाड़ और निकली चुहिया.
  13. सो हमें हमारी अमीरी की परिभाषा जो चूंकि भारत से सम्बन्धित है हम यहां के ही आंकड़ों की एक सारणी लेते हैं
  14. यहां हम पाते हैं कि समग्र आमदनी में तकरीबन साठ प्रतिशत आमदनी करने वाला वर्ग कुल आबादी का मात्र आधा प्रतिशत ही है दूसरे शब्दों में हमारे आसपास के हर 200 व्यक्तियों मे से मात्र एक व्यक्ती ही रुपये दस लाख या उससे अधिक सालाना बनाता है
  15. सो हम एक ऐसी परियोजना के बारे में बात करते हैं जिससे हममें से अधिकांश सालाना दस लाख से अधिक बना सकें बिना किसी बड़ी भारी तपस्या के या किसी भी तरह के भेदभाव के जैसे डिग्रीधारी या अगड़ा-पिछड़ा या पुरुष-स्त्री या शहरी-ग्रामीण या पूंजी निवेश इत्यादि-इत्यादि.
  16. पर उसे जानने से पहिले हमें वैचारिक रूप से यह दृड़ निश्चय करना होगा कि हम पुनः विदेशी शिक्षा के उस झांसे में तो खुद आयेंगे और ही अपने सम्पर्क के किसी अन्य को उसमें फसने देंगे जो कहता है कि सफल होने के लिये लगातार दस हजार घण्टे की साधना की आवश्यकता होती है. क्योंकि हमारी गरीबी का सबसे बड़ा कारण हमारी शिक्षा पद्धति का यही आधार होना है जिसके तहत हम बच्चे को इस परिकल्पना के वीभत्सतम चक्रव्यूह में फंसाकर यह प्रश्न करने को मजबूर कर देते हैं.
  17. यह कैसे होता है जानने के लिये एक बहुत छोटा उदाहरण लेते हैं. मान लीजिये करोनाप्रसाद को दिल्ली इंटरव्यू के लिये जाना है. इनके कस्बे से प्रतिदिन एक ट्रेन दिल्ली जाती है अब .प्र.जी निर्धारित दिन अपने घर से निकल कर अपने पापा के साथ उनकी मोटर सायकल पर सवार होकर निकल पडते हैं ट्रेन पकडने.
  18. अब सवाल आता है उनके घर से निकल के रेलवे स्टेशन पहुंच टिकिट खरीद कर ट्रेन पकड़ने के बीच की सारी कहानियों के बावजूद 1% से 99% के बीच कितने प्रतिशत से वह पास हो पायंगे ट्रेन पकड़ने की परीक्षा में?
  19. और जिन्दगी की सफलता या अमीरी का रहस्य भी इसके जवाब में छुपा हुआ है; जौ कि वास्तव में इस सवाल में पूछा ही नही है. करोनाप्रसाद या तो ट्रेन पकड़ कर 100% या किसी भी कारण से उसे छौड़ कर 0% पायेंगे. क्योंकी जिनदगी की परीक्षा मे 1% से 99% का मतलब होता है अनुत्तीर्ण. क्योकि 35% या 65% या 95% ट्रेन पकड़ी जा सकती है क्या? क्या यह 1% से 99% का झोल रचा ही हमें निरंतर गरीब बनाये रखने के लिये नहीं है? 1% से 99% के झौल में फसकर साल दर साल कौचिंग, ट्यूशन, ब्राहमी, चवनप्राश और जाने कितने घौटाले करने के बाद हम किस मुकाम पर जा पहुंचते हैं यह जानेगे अगले पेराग्राफ के बाद.
  20. और सर्वाधिक विडंम्बना देखिये इस दस हजार घण्टे के पांच घण्टे प्रतिदिन से 2000 दिन और 200 दिन प्रतिवर्ष से दस वर्ष; तो सिर्फ एक विषय पर लगाये जाते हैं हर बच्चे को अलग विषय की साधना करायी जाती है; "सब धान बाईस पसेरी" की कहावत के चलते नीचे जैसी लाइन साल दर साल बड़ती चली जाती है हनुमानजी की पूंछ की तरह.
  21.  
  22. यहां हम पूछ सकते है कि इस सब रामायण से भारत में हमारी अमीरी का क्या रिश्ता?
  23. मेंरी जिन्दगी के प्रदीर्घ अनुभव से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि प्रत्येक व्यक्ति दस हजार अन्य लोगों की तुलना में कम से कम एक काम बेहतर तरीके से कर सकता है। और आपको अचम्भित करने वाला तथ्य यह है कि उस व्यक्ति को उस काम करने में इतना मजा़ आता है कि उसे लगता ही नहीं कि वह कौई काम भी कर रहा है.
  24. अब जरा कयास लगाइये कि यदि आपके हाथ मैं ऐसा दीपक जाये जिससे आप भी अपने आसपास के हजारों लोगों के अन्दर छिपी प्रतिभा जान जायें और उन्हें ऐसी जगह काम पर लगवा दे जहां उनके हुनर की सर्वाधिक जरूरत भी हो और कीमत भी.
  25. जरा सोचें कि ऐसी परिस्थिती में जब वह व्यक्ति जो अभी अभी तक बैरोजगार ही था परन्तु आपके दीपक की एक चिनगारी की बदौलत लाखों रुपये कमाने लगे; उसके मां-बाप, भाई, बहन उसके रिश्तेदार और उसके मित्रों की नजर में आपके प्रति श्रद्धा कितनी बड़ जायगी?
  26. अब जरा विचार करें इस परिस्थिति मैं आपके चारों ओर के अन्य बैरोजगार या अल्पवैतनिक आपसे कैसे व्यवहार करेंगे, आपके समाज में, गांव देहात में, आपके कस्बे में आपको किन नजरों से देखा जायेगा? आपकी अमीरी का स्तर कहां पहुंच जायेगा?
  27. यदि यही दीपक आप अपने कालेज के ऐसे सहपाठियों, रिश्तेदारों और मित्रों से शेअर करें जो आपके गांव देहात या आपके कस्बे के बाहर रहते हों; तब आपका प्रभाव देश के किस-किस कोने तक नहीं पहुंच जायेगा?
  28. अब जरा इस फेण्टेसी में दीपक को निकाल कर उसकी जगह मे “पारकेम्प अनुज्ञाधारी शिविर समन्वयक” को रख लें तो आपकी यही फेण्टेसी जमीनी हकीकत में बदलते देर कितनी लगेगी सोचें?
  29. यदि आप वास्तव में अपनी अमीरी के लिये वचनबद्ध होकर काम करने को इच्छुक हैं तब आपका यह कदम सिर्फ आपको भारत में अमीर बनने में मदद करेगा बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था डॉलर 5 ट्रिलियन तक पहुंचाने में भी कैसे मदद करेगा.
भारत में अमीर कैसे बना जा सकता है.pdf