Aspiration for wealth is Differentiates human from animal

Aspiration for wealth Differentiates human from animal
Aspiration for sustainability differentiates an agrarian folk from a pirate or nomad

Saturday, May 2, 2020

भारत में अमीर कैसे बना जा सकता है?

  1. आपके जैसे बचपन से लेकर अभी कुछ वर्ष पूर्व तक मेरी भी यही ख्वाइश थी.
  2. इस ख्वाइश के रहते पिछली कुछ शताब्दियों में जितना हमने भोगा है शायद ही किसी ने भोगा; नही कहूंगा क्योंकि इतिहास से लेकर वर्तमान तक हमारे पास उदहारण भरे पढे हैं इसके.
  3. अस्तु हमें इस सवाल का जवाब जानने के पूर्व थोड़े विषयांतर से यह जानना ज्यादा जरूरी है कि क्यों हमें यह ख्वाइश पैदा होती है, इसके उदगम के कारण क्या हैं? पर इसके भी पूर्व थोड़ा सा मेरे बचपन की फेण्टेसी और उसके उद्गम के तारतम्य के बारे में जान लेंगे तो आगे पढ़ना सुगम हो जायेगा.
  4. जब मैं सिर्फ पांचएक वर्ष का रहा होऊँगा तब मुझे मेंरी मां के आँचल से छीनकर विद्यालय भेजने की कवायद में मुझे बाजार ले जाया गया औऱ शायद एक सिक्के भर का कलाकन्द हलवाई की दूकान से खरीद कर खिलाया गया. मुझे बताया गया कि यदि मैं स्कूल जाऊँगा तो मुझे रोज एक सिक्का मिला करेगा जिसके द्वारा मैं जो चाहूं खरीद कर खा सकूंगा.
  5. इस घटना के पूर्व के मेरे जीवन में तो मेंने कभी कलाकन्द चखा था सिक्के की महत्ता मालूम थी क्योंकि इसके पहिले मेरे भी जीवन के आरम्भिक लगभग 1800 दिन ऐसे ही बीते थे जैसे अन्य सभी जीव जन्तुओं की अगली पीढी तैयार होती है; बिना अर्थशास्त्र से परिचय के, सिर्फ मां की देखभाल की दम पर. (आज की शहरी पीढी के लिये कलाकन्द पशुओं के दुग्ध में चीनी मिलाकर लौहे की कढाई मैं उबाल - उबाल कर मावे जितनी घनता होने तक पकाकर उथले बरतन में फैला कर पूरा ठण्डा होने के बाद परौसी जाने वाली एक मिठायी है जिसके बारे में विकीपीडिया भी झूटी जानकारी परोस रहा है.)
  6. इस घटना के कुछ दिनों बाद सिक्के मिलने बन्द हो गये पर स्कूल जाने की मजबूरी पल्ले पड गयी. ऐसी परिस्थिती मैं बस एक ही धुन गले लग गयी कि मैं बड़ा होकर बोरी भर के सिक्के घर लाऊँगा. (जूट के बोरों में भर के साल में एक बार गेहूं घर में आते देखे होने के कारण बोरी से तब तक पहचान हो चुकी थी)
  7. बचपन की इस एक सनक के परिणाम स्वरूप मुझे अब सुबह उठकर या तो घण्टों मेराथान प्रेक्टिस हैतु दौड़ना पढता है या साधारण शहरी मानव की भाषा मैं भयंकरतम बन्दरनुमा एक्सरसाइज या व्यायाम इस लिये करना पढता है कि कही मधुमेह या दिल के दौरे शुरू हों जायें; यह जवाब या अन्य पुस्तकों का लेखन इसलिये करना पडता है कि हथेलियां गठिया ग्रस्त हों जायें. लम्बे समय तक सोना इसलिये पडता है कि रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. बाकी सारे समय घरघुस्सू इसलिये बना रहने पड़ता है कि कौई अकारण ईर्ष्या द्वेष करने लग जाये, कम्पनियां और संस्थायें इसलिये बनानी पढती हैं कि कही अलजाइमर के शिकार हो जांये.
  8. सामान्यतया 95% आबादी को एसे फालतू काम करने की तो जरूरत पढती है हि इच्छा या समय या आवश्यक्ता रहती है लोकल ट्रेन पकड़ने की जद्दोजहद और दो घण्टे रोज की उसमें सफर या छह-सात घण्टों की रोजी रोटी की फिक्र औऱ उठापटक शरीर औऱ खौपड़ी दौनों को चुस्त दुरुस्त तरोताजा बनाये ही रखती है.
  9. अब तक का बकरापन निश्चित रूप से आपको विचलित करता होगा सो अब हम आते हैं अपने क्रमांकके मुद्दे पर "क्यों हमें यह ख्वाइश पैदा होती है, इसके उदगम के कारण क्या हैं?"
  10. हालाकि क्रमांक 4 से 8 की कथा के बाद यह कौई छिपी हुई बात नहीं रह गई कि यह सपना अधिकांशतः पारिवारिक धृतराष्ट्रीय सौच (हमारी शिक्षा के बारे में) का परिणाम होती है जहां हम इतने आत्माभिमानी बन जाते हैं कि समाज की तो छो़ड़ें अपने ही सगे सम्बन्धियों और उनके नम्बरों से आगे निकलने और उनकी भौतिक स्थिति से अधाधुन्द तुलना के जाल में फस जाते हैं.
  11. हममे से अधकांश की अमीरी की परिभाषा में पड़ौसी की बड़ी कार या कोठी या विदेश में पढते उनके बच्चे या कौई धूमधाम से हुयी शादी से आगे का शायद ही कुछ आता हो. बिलगेटे या जेफबीजौ को तो जाने दो हमें यह भी पता होना विशेष कक्षा में पहुंचा देगा कि बिलियन में बिन्दी कितनी होती हैं औऱ अपने राज्य में वैसे बिलियनियर कौन हैं जिन्हें हम दूर से भी जानते भर हों सिवा बाबाओं और राजनीतिज्ञों के?
  12. सो जब तक हमारी परिभाषा ही दुरुस्त हो हमारा सवाल हमें कहां पहुंचायेगा? पर यह तो ऐसा हो गया कि खौदा पहाड़ और निकली चुहिया.
  13. सो हमें हमारी अमीरी की परिभाषा जो चूंकि भारत से सम्बन्धित है हम यहां के ही आंकड़ों की एक सारणी लेते हैं
  14. यहां हम पाते हैं कि समग्र आमदनी में तकरीबन साठ प्रतिशत आमदनी करने वाला वर्ग कुल आबादी का मात्र आधा प्रतिशत ही है दूसरे शब्दों में हमारे आसपास के हर 200 व्यक्तियों मे से मात्र एक व्यक्ती ही रुपये दस लाख या उससे अधिक सालाना बनाता है
  15. सो हम एक ऐसी परियोजना के बारे में बात करते हैं जिससे हममें से अधिकांश सालाना दस लाख से अधिक बना सकें बिना किसी बड़ी भारी तपस्या के या किसी भी तरह के भेदभाव के जैसे डिग्रीधारी या अगड़ा-पिछड़ा या पुरुष-स्त्री या शहरी-ग्रामीण या पूंजी निवेश इत्यादि-इत्यादि.
  16. पर उसे जानने से पहिले हमें वैचारिक रूप से यह दृड़ निश्चय करना होगा कि हम पुनः विदेशी शिक्षा के उस झांसे में तो खुद आयेंगे और ही अपने सम्पर्क के किसी अन्य को उसमें फसने देंगे जो कहता है कि सफल होने के लिये लगातार दस हजार घण्टे की साधना की आवश्यकता होती है. क्योंकि हमारी गरीबी का सबसे बड़ा कारण हमारी शिक्षा पद्धति का यही आधार होना है जिसके तहत हम बच्चे को इस परिकल्पना के वीभत्सतम चक्रव्यूह में फंसाकर यह प्रश्न करने को मजबूर कर देते हैं.
  17. यह कैसे होता है जानने के लिये एक बहुत छोटा उदाहरण लेते हैं. मान लीजिये करोनाप्रसाद को दिल्ली इंटरव्यू के लिये जाना है. इनके कस्बे से प्रतिदिन एक ट्रेन दिल्ली जाती है अब .प्र.जी निर्धारित दिन अपने घर से निकल कर अपने पापा के साथ उनकी मोटर सायकल पर सवार होकर निकल पडते हैं ट्रेन पकडने.
  18. अब सवाल आता है उनके घर से निकल के रेलवे स्टेशन पहुंच टिकिट खरीद कर ट्रेन पकड़ने के बीच की सारी कहानियों के बावजूद 1% से 99% के बीच कितने प्रतिशत से वह पास हो पायंगे ट्रेन पकड़ने की परीक्षा में?
  19. और जिन्दगी की सफलता या अमीरी का रहस्य भी इसके जवाब में छुपा हुआ है; जौ कि वास्तव में इस सवाल में पूछा ही नही है. करोनाप्रसाद या तो ट्रेन पकड़ कर 100% या किसी भी कारण से उसे छौड़ कर 0% पायेंगे. क्योंकी जिनदगी की परीक्षा मे 1% से 99% का मतलब होता है अनुत्तीर्ण. क्योकि 35% या 65% या 95% ट्रेन पकड़ी जा सकती है क्या? क्या यह 1% से 99% का झोल रचा ही हमें निरंतर गरीब बनाये रखने के लिये नहीं है? 1% से 99% के झौल में फसकर साल दर साल कौचिंग, ट्यूशन, ब्राहमी, चवनप्राश और जाने कितने घौटाले करने के बाद हम किस मुकाम पर जा पहुंचते हैं यह जानेगे अगले पेराग्राफ के बाद.
  20. और सर्वाधिक विडंम्बना देखिये इस दस हजार घण्टे के पांच घण्टे प्रतिदिन से 2000 दिन और 200 दिन प्रतिवर्ष से दस वर्ष; तो सिर्फ एक विषय पर लगाये जाते हैं हर बच्चे को अलग विषय की साधना करायी जाती है; "सब धान बाईस पसेरी" की कहावत के चलते नीचे जैसी लाइन साल दर साल बड़ती चली जाती है हनुमानजी की पूंछ की तरह.
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  22. यहां हम पूछ सकते है कि इस सब रामायण से भारत में हमारी अमीरी का क्या रिश्ता?
  23. मेंरी जिन्दगी के प्रदीर्घ अनुभव से मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि प्रत्येक व्यक्ति दस हजार अन्य लोगों की तुलना में कम से कम एक काम बेहतर तरीके से कर सकता है। और आपको अचम्भित करने वाला तथ्य यह है कि उस व्यक्ति को उस काम करने में इतना मजा़ आता है कि उसे लगता ही नहीं कि वह कौई काम भी कर रहा है.
  24. अब जरा कयास लगाइये कि यदि आपके हाथ मैं ऐसा दीपक जाये जिससे आप भी अपने आसपास के हजारों लोगों के अन्दर छिपी प्रतिभा जान जायें और उन्हें ऐसी जगह काम पर लगवा दे जहां उनके हुनर की सर्वाधिक जरूरत भी हो और कीमत भी.
  25. जरा सोचें कि ऐसी परिस्थिती में जब वह व्यक्ति जो अभी अभी तक बैरोजगार ही था परन्तु आपके दीपक की एक चिनगारी की बदौलत लाखों रुपये कमाने लगे; उसके मां-बाप, भाई, बहन उसके रिश्तेदार और उसके मित्रों की नजर में आपके प्रति श्रद्धा कितनी बड़ जायगी?
  26. अब जरा विचार करें इस परिस्थिति मैं आपके चारों ओर के अन्य बैरोजगार या अल्पवैतनिक आपसे कैसे व्यवहार करेंगे, आपके समाज में, गांव देहात में, आपके कस्बे में आपको किन नजरों से देखा जायेगा? आपकी अमीरी का स्तर कहां पहुंच जायेगा?
  27. यदि यही दीपक आप अपने कालेज के ऐसे सहपाठियों, रिश्तेदारों और मित्रों से शेअर करें जो आपके गांव देहात या आपके कस्बे के बाहर रहते हों; तब आपका प्रभाव देश के किस-किस कोने तक नहीं पहुंच जायेगा?
  28. अब जरा इस फेण्टेसी में दीपक को निकाल कर उसकी जगह मे “पारकेम्प अनुज्ञाधारी शिविर समन्वयक” को रख लें तो आपकी यही फेण्टेसी जमीनी हकीकत में बदलते देर कितनी लगेगी सोचें?
  29. यदि आप वास्तव में अपनी अमीरी के लिये वचनबद्ध होकर काम करने को इच्छुक हैं तब आपका यह कदम सिर्फ आपको भारत में अमीर बनने में मदद करेगा बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था डॉलर 5 ट्रिलियन तक पहुंचाने में भी कैसे मदद करेगा.
भारत में अमीर कैसे बना जा सकता है.pdf