Wealth = [(Self Respect + Self Pride + Self Reliance + Commitment + Knowledge + Focus + Passion + Chastity) X Enthusiastic Activity] X (Greed – Need)
Aspiration for wealth is Differentiates human from animal
Aspiration for wealth Differentiates human from animal
Aspiration for sustainability differentiates an agrarian folk from a pirate or nomad
Tuesday, September 16, 2025
This X post references a clip of Stephen Schwarzman, co-founder and CEO of Blackstone, discussing the challenges of entrepreneurship, highlighting the psychological toll and the necessity of perseverance despite initial lack of support and potential failure.
Schwarzman's insights are particularly relevant given his background; he founded Blackstone in 1985, transforming it into a global private equity giant, and his experiences underscore the real-world applicability of his advice to aspiring entrepreneurs facing similar hurdles.
जब हम करियर के बेस्ट ऑप्शन की बात करते हैं तो मुझे एक बात यह कचौटती है कि हमारी सोच की गहराई क्या है?
समझो मेरा जन्म ऐसे घर में हुआ जहां खाना गैस के सिलेंडर पर पकाया जाता है बचपन से। अब मुझे कोई कहे कि लो यह लकड़ी और यह कोयला और यह चूल्हा, इस पर खाना पकाओ। तो मेरे लिए तो वह असंभव सी बात हो जाएगी। लेकिन जिस घर में पैदाइश से लेकर अभी तक, वही लकड़ी या कोयले पर खाना पकाया जाता है; उसके लिए तो खाना पकाने का वही बेस्ट संसाधन है।
तो मोरल ऑफ द स्टोरी है कि किन परिस्थितियों से गुजरकर हम, इस मुकाम पर पहुंचे हैं, वह जाने बिना सुपरलेटिव डिग्री लगाना; एक कुएं के मेंढक की मानसिकता से अधिक कुछ भी नहीं हो सकता।
आप देखिए जिन घरों में सभी लोग डॉक्टर हैं, उनकी नई पीढ़ी डॉक्टर बनना नहीं चाहती।
जिनके घरों में जन्मजात व्यवसाय होता है, अभी नई पीढ़ी नौकरी करना चाहती है।
जिन घरों में पीढ़ियों से खेती होती चली आई है, नई पीढ़ी कोई भी सरकारी नौकरी के लिए जान छिड़कने को तैयार है।
और सबके अपने-अपने आदर्श हैं। जिन घरों में गरीबी में खूब संघर्ष किए गए हैं, उनके बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर या कलैक्टर बनना चाहते हैं। और डॉक्टर इंजीनियरों के बच्चे प्रबंधन स्नातक बनना चाहते हैं।
तो यह सारा मामला ऐसा है की जो हमारे पास है, उसको छोड़कर, जो हमारे पास नहीं है; उसकी तरफ भागना।
पिछले 99 साल से यह एक भयानक विभीषिका बनती जा रही है।
आप देखिए हमारे जितने भी आजीविका के संसाधन पिछले 99 साल में विकसित हुए, जिसको हम तथाकथित विकास के नाम से संबोधित करते हैं, उस सब के बावजूद; जो एक अमेरिकन डॉलर 1925 में 10 पैसे का था, आज 2024 में ठीक 99 साल बाद ₹84 से ज्यादा का है।
मतलब हमारे सभी मसीहाओं, आदर्शों और हम सब के सम्मिलित प्रयासों से हम 99 साल में 840 गुना अपनी अर्थव्यवस्था को गड्ढे में घुसा चुके हैं।
बावजूद इसके कि हम सबको चॉइस अपने लिए बेस्ट करियर ढूंढने की थी और अभी भी है।
हमने हजार से ज्यादा यूनिवर्सिटी बनायीं।
35000 से ज्यादा कॉलेज बनाये।
लाखों आइआईटियन बनाये।
ढैरों सड़क, पुल, बांध बनाए।
व्यक्ति की मृत्यु से संदर्भित जैसे बंदूक बनाना, चलाना, गोली चलाना सीखना, सिखाना; तलवार चलाना सीखना-सिखाना, कुश्ती, बॉक्सिंग, जूडो, कराटे और न जाने कितनी ही युद्ध कलायें सीखना-सिखाना जैसे ढैरों धंधे फैलाये।
पिस्टल शूटिंग और भाला फेंक में तो हम ओलंपिक से गोल्ड मेडल भी झटक लाये।
यह सब हम ही लोगों ने बनाया है, कुछ ना कुछ अपनी नौकरी या बेस्ट करियर बनाने के चक्कर में।
परंतु इन सब के कारण हमारी अर्थव्यवस्था खड्डे में गई है, यह हम सबको अब अच्छी तरह से पता चल चुका है।
आज जरा सा मौसम बदलते दिखा, सब के सब छींकने, खांसने लगते हैं। या सबको बुखार आने लगता है।
क्या इन्हीं तरीकों से हम कभी सोने की चिड़िया कहलाए थे?
हो सकता है, मेरी बातें बहुत कड़वी लगें आपको।
परंतु यदि हम वास्तव में कुछ बेस्ट के लिये सोच रहे हैं, तो वह इतना आसान भी नहीं होना चाहिए।
अन्यथा अच्छा, बेहतर और बहतरीन का मतलब ही बैमाना न हो जाये।
तो अब आते हैं मुद्दे पर।
जब आज दिखने वाले सारे पर्यायों के कारण, इस देश की अर्थव्यवस्था मात्र 99 साल में 840 गुना गड्ढे में चली गई; उनमें से एक भी हमें बेहतरीन तो नहीं ही लगना चाहिए।
तो इस बेहतरीन ढूंढने के चक्कर में हमें एकदम अभिनव अवसर खोजना पड़ेगा।
यहां मैं ऐसे ही एक नए अवसर के बारे में बताना चाहूंगा।
आज 25 से 55 साल के बीच की उम्र में, अकाल मृत्यु; मृतक/मृतका के बच्चों और जीवनसाथी को अनाथ बनाकर उनके शाश्वत समर्थन से वंचित कर देती है।
यह घटना परिवार & समाज की आर्थिक मज़बूती और राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव भी डालती है।
ऐसे पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिए; हमें इस प्रकार की घटनाओं को कम करना चाहिये।
तो अब एक नया व्यवसाय जिसका नाम ही “प्राण रक्षा अभियान” है।
यदि हम इसमें शामिल होकर प्रतिवर्ष शपथ पूर्वक 25 जान बचाना शुरू कर दें, तो अगले तीन वर्ष में; हम पूरे स्विट्जरलैंड की आबादी जितनी जानें; अपने देश में बचा सकेंगे।
जो अन्यथा असामयिक मृत्यु के चंगुल में चले ही जाने वाले हैं।
इस एक प्रयास के द्वारा हम एक ही दशक में मानव विकास सूचकांक के आधार पर, आज के 134 से उठकर; पूरी दुनिया के सिरमोर एक नंबर पर पहुंच जाने वाले हैं।
और देश की अर्थव्यवस्था भी विश्व में सिरमौर बन जाने वाली है।
तो यदि आप वास्तव में अपने लिए बेहतरीन करियर चुनना चाहते हैं तो मुझे नहीं लगता कि इससे बेहतर करियर आप शायद ही इस दशक में ढूंढ पाएं।
इसके लिये ग्लोबल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ किचनोपैथी® का गठन, वैज्ञानिक, तकनीकी अनुसंधान और डिजाइन की मदद से; सामान्य समाज को उच्च ज्ञान, और बेहतर जीवन शैली सुलभ कराके, भारत की अकाल मृत्यु दर को; कम करने के लिए किया गया है
अपने करियर ग्रोथ के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए आप इसे देख सकते हैं: https://www.grioki.com/jro
भाग्य और झूठ के साथ जितनी ज्यादा उम्मीद करेंगे वो उतना ही ज्यादा निराश करेंगे तथा कर्म और सच पर जितना जोर देंगे वो उम्मीद से सदैव ही ज्यादा देंगे !!!
Common Causes of Bad Decisions:
1. Assumptions from small sample sizes
2. Wanting the world to work the way we want
3. Conforming to expectations/ authority/ group
4. Blindness to large trends
5. Inability to determine "and then what"
6. Using incorrect maps
7. This is the way we've always done it.
Be careful.
Tribalism. ...
The wrong incentives. ...
Compounding small errors. ...
Underestimating adaptation. ...
Letting people with different values influence you. ...
Misplaced objectives. In an uncertain world, we make almost all of our decisions based on the perceived reward versus punishment. ...
Analysis paralysis. ...
Waiting for more information. ...
Not thinking it through. ...
Confusing luck with skill. ...
Our own intelligence. ...
Recent embarrassment. ...
Misplaced focus on the individual player.
The most important things in life are:
1. Family
2. Health
3. Time
4. Money
5. Status
Many of us are lured into chasing 4 & 5 at the cost of the other most meaningful things in life!
भारत, अमेरिका की मुद्रा को; बिलकुल पीछे छोड़ सकता है और वह भी एक दशाब्दि के अंदर ही.
जैसे ही हम ईंधन में आत्मनिर्भर हो जाएं और सारे युवाओं को आर्थिक रूप से काम में समायोजित कर लें, कल्पना करें सिर्फ 9 करोड़ लोग यानी कि 90 मिलियन यानि की हर 15 भारतीय में से एक व्यक्ति; 5 मिलियन भी प्रतिवर्ष बनाने लगें तो 450 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था मात्र 9 करोड लोगों के सहयोग से बनेगी.
बाकी बचे हुए 14 आदमियों में; यह पैसा घूमने पर; अर्थव्यवस्था इसका 18 गुना होने वाली है. ऐसा हमने पहले भी देखा है. (देखें नीचे की सारणी)
यह 18 गुना हो जाता है ₹8100 ट्रिलियन सालाना इकोनामी या ₹81/ डॉलर के हिसाब से 100 ट्रिलियन डॉलर प्रतिवर्ष.
और चूंकी हमारा ईंधन आयात शून्य होगा, तब भी सारी दुनिया को अपने डाइनिंग टेबल पर; हमारे मसाले और मुर्दा मांस के बिना; स्वाद आने वाला नहीं है.
सारी वैश्विक आईटी इंडस्ट्री का, हमारे इंजीनियरों के बिना; काम चलने वाला नहीं है.
जब हमारी आत्मनिर्भरता की स्थिति 99% हो चुकेगी, तो बाकी बचे 1% के लिए; बाकी सारी दुनिया के निर्यातकों को; अपनी मुद्रा को; हम से नीचे ही रखना पड़ेगा; अन्यथा उनकी अर्थव्यवस्था डूबने वाली है; हमारी नहीं.
यह सब संभव बनाने के लिए, ना हमें किसी वैश्विक समुदाय की; ना किसी शासन की; ना ही किसी आयतित तकनीकी की; आवश्यकता है.
बस आवश्यकता है, तो सिर्फ और सिर्फ; हमारे अपने कमिटमेंट की.
पर अब सवाल यह उठता है कि, 90 मिलियन लोग; 5 मिलियन सालाना बनाएंगे कैसे?
क्या आपको मालूम है कोकोकोला, आप ही के देश का पानी & शकर; आप ही के देश में बनी गाड़ीयों द्वारा; आप ही के देश में बनी हुई दुकानों पर बेच कर; कैसे पैसा बनाता है?
"इस प्रकार बनाए गए पैसे का कारण होता है; बौद्धिक संपदा में निवेश."
यही बौद्धिक संपदा में निवेश, पिछले 10 वर्ष से ईकोभारत में; हम कर रहे हैं. और इसमें लाभार्थी भागीदार; आप भी बन सकते हैं; आज ही अभी से.
क्या आप, अपने आप को; अन्य 14 भारतीयों की तुलना में; आर्थिक रूप से अधिक सुदृढ़ बनाना चाहते हैं?
Despite April 16, 2021 11:59 ISTLata Mangeshkar, 91, is all set to take the Covid vaccine this week.
All other eligible members of the Mangeshkar family have already taken the vaccine.
"Bas main baaki reh gayi hoon (only I remained)," says Lataji.
The Bharat Ratna had been been so far excluded from the jab club because of her frail health. She was hospitalised for a severe lung infection in December 2019 and has been advised extra precaution since then.
"But now my personal doctor whom I trust blindly says it is best that I take the vaccination since it is absolutely safe," she says.
"I advise everyone out there eligible for the vaccination to go fo it. I am told it does not ensure complete immunity from the virus. But it minimises the impact considerably if you are unfortunate enough to get the virus," she adds.
"It is a very bad situation out there," the Singing Legend says, sounding very distressed. "I urge all people to follow the guidelines."
"Aab yeh doosron ke ghar ki aafat nahin hai yeh ham sab ke ghar aa chuki hai (covid is not other people's crisis anymore it has now reached all our homes)."
Lata Mangeshkar was admitted to Mumbai's Breach Candy Hospital on January 8 after being diagnosed with COVID-19 and pneumonia. She showed mild symptoms of COVID-19.
On January 28, she was taken off the ventilator after showing signs of improvement.
On Saturday February 5, her condition worsened and she was again admitted to hospital and was back on ventilator support. Due to her health conditions she underwent aggressive therapies before succumbing to multiple organ failure.
She has died because of multi-organ failure after more than 28 days of hospitalisation post COVID-19.Feb 6, 2022
यह लेख मेंने १७ जनवरी 2021 को मेंरे प्रायवेट समूह में प्रकाशित किया था; एक मित्रवत सलाह व चैतावनी के रूप में:
कल गुजरे हुए दिन में विश्व भर में साढे 16 हजार से ज्यादा मौतें करोना के कारण हुयी हैं, यह संख्या पिछले पूरे वर्ष में सबसे बड़ी है, इतनी मौतें किसी एक दिन में कभी भी नहीं हुई थी करोना से।
पिछले वर्ष में जब यूरोप में मौतें हो रही थीं, तो हम भारतवासी गर्व कर रहे थे; कि हम तो भारत में रहते हैं, अच्छा है देखो वहां कैसे मर रहे हैं।
उसके बाद हमारे यहां जब हजार मौतें रोज होने का शुरू हुआ, तो यूरोप और अमेरिका में लोग वापस माल और रेस्टोरेंट में मजे मार रहे थे, क्योंकि उनके यहां पर वह कम हो चुका था।
अब जबकि विश्व भर में इसके कई सारे म्यूटेन्ट उभर कर आ चुके हैं, पर वही पिछले साल जैसे जनवरी-फरवरी में भारत में इतना प्रकोप नहीं हुआ था; आज भी परिस्थिति तकरीबन वैसे ही हो गई है।
अब जब यूरोप और अमेरिका में मौतों की बाढ़ आई हुई है, हमारे यहां प्रतिदिन पिछले हफ्ते भर से तकरीबन तकरीबन 200 से कम ही मर रहे हैं।
और हमारे यहां क्रिकेट टूर्नामेंट से लेकर सभी प्रकार के समारोह; जोशो ख़रोश के साथ शुरू होते दिख रहे हैं!
इस आशा में कि अब तो वैक्सीन आ चुका है।
क्या हमें मालूम है कि अपने देश में कुल डेढ़ लाख मौतों में से पचास हजार मौतें अकेले महाराष्ट्र में हुई हैं जबकि वहां की आबादी पूरे देश की 10 वे भाग से भी कम है। यहां प्रत्येक 10,000 आबादी में से 9700 से ज्यादा व्यक्ति करोना से साफ बच निकले हैं। सिर्फ 300 से कम ही लोगों को करोना ने इनफेक्ट कर पाया था; और उनमें से 9 से भी कम लोगों की मौत हुई थी।
इसका मतलब यह है की 97% का कुछ भी बिगाड़ नहीं सका करोना।
अब आते हैं वैक्सीन के ऊपर।
कोई भी वैक्सीन 94, 95 या 96% से अधिक परिणाम दिखाने में सफल नहीं हुआ है।
इसका मतलब समझते हैं हम।
जब सामान्य परिस्थिति में 100 में से 97 सुरक्षित ही थे अब वैक्सीन लगाकर 100 में से 96 ही सुरक्षित हो पाएंगे मतलब 1% और मरने को तैयार होंगे और हम ढाई से लेकर अब 4% मौत के आंकड़ों को पाना चाह रहे हैं, वैक्सीन लगाकर।
जिस देश में वैक्सीन बनाने वाली कंपनी का हेड ऑफिस है, इंग्लैंड में जहां प्रति 10000 व्यक्तियों में १३ से ज्यादा लोग प्रतिदिन मर रहे हैं, जबकि संपूर्ण भारत की करोना से औसत मृत्यु दर 10000 में एक के बराबर ही है।
जब वह कंपनी के वैक्सीन की मदद से अपने देश में अपने नागरिकों को नहीं बचा पा रहे; तो हमारी क्या दशा होने वाली है?
यह तो अरनबगेट के बाद सामान्य बेपढ़े को भी समझ में आने वाली बात है कि नहीं?
महाराष्ट्र में करोना से हुई 86% मौतें सिर्फ 50 वर्ष या उससे अधिक आयु समूह के लोगों की।
अर्थात 50 से कम उम्र के व्यक्तियों में करोना के कारण सिर्फ 14% ही मृत्यु दर है। चूकी टीके की शुरुआत हेल्थ वर्कर के द्वारा हुई है जो प्रायः 60 से कम ही उम्र के अधिक रहने वाले हैं अतः हमें अगले 7 हफ्ते तक कुछ भी पता नहीं चलेगा वैक्सीन की परिणाम-कारकता के बारे में।
अतएव ५ से १५ मार्च के बीच अगर हम अपनी आंखें खुली रखेंगे तो ही अपने टीकाकरण के लिए सही निर्णय ले पाएंगे।
नौकरी की अनिवार्यता व ब्यूरोक्रैसी की हठधर्मिता के चलते उक्त सलाह को नजर अन्दाज कर टीकाकरण का हश्र; नीचे के चार चित्रों, विशेष कर चौथे (मृत्यु-प्रमाणपत्र) से हम समझ सकते हैं।
उक्त मृत्यु-प्रमाण पत्र का अवलोकन करने के बाद यदि हम टीकाकरण का निम्नांकित ग्राफ देखें तो 8 मार्च के दिन हम को शुरूआती सर्वाधिक टीकाकरण हुआ दिखता है।
vaccination status in india for covid 19
इसके चार+ हफ्ते बाद अर्थात गुजरे हुए 7 मई 2021 को अभी तक करोना से मृत्यु का आधिकारिक सर्वाधिक बड़ा आंकड़ा (4194) हमारे सामने है।
हमारे देश में 17 जनवरी से टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। यदि हम नीचे चित्र के आंकड़े देखें तो 17 जनवरी से 17 मार्च तक कुल 8 हफ्ते में जबकि दूसरा टीका भी लगे तकरीबन 2 हफ्ते हो चुकना प्रारंभ गया था,
हम वास्तव में देश में न्यूनतम मृत्यु दर घोषित कर रहे थे। किंतु ठीक उसके बाद आज पर्यंत हम लगातार उत्तरौत्तर मृत्यु के आंकड़े बढ़ते हुए ही देख रहे हैं।
क्या आज हमारे कोई भी प्रकांडतम वैज्ञानिक, राजनयिक या प्रशासनिक अधिकारी यह आश्वासन दे सकते हैं कि उक्त टीकाकरण ग्राफ के उच्च बिंदुओं के सानुरूप अगले 8 हफ्तों में मृत्यु के आंकड़े भी समानुपातिक नहीं होंगे?
और यदि हम यह नहीं आश्वस्त कर सकते तो फिर व्यर्थ ही इस टीकाकरण अभियान को क्यों प्रचारित और प्रसारित कर इस सदी के भयंकरतम नरसंहार की प्रस्तावना कर रहे हैं?
इस सारी आंकड़ेबाजी को देखने के बाद भी यदि हमारे कुछ भाई टीकाकरण की लाइन में लगने के लिए भीड़ में शामिल होते हैं तो इसे हम वैचारिक दिवालियापन के अलावा क्या समझें?
New Delhi: Around 80 medical personnel and a surgeon at Delhi's Saroj Super Speciality Hospital have tested positive for the coronavirus over the last month. Dr AK Rawat, the surgeon who was vaccinated, died of COVID-19 on Saturday. He was 58.
"Around 80 medical staff have tested positive between April and May. Dr AK Rawat was my junior, a surgeon... he succumbed to Covid yesterday," the hospital's Chief Medical Officer Dr PK Bhardwaj told NDTV.
Dr Bhardwaj maintained that Dr Rawat was battling on. "He (Dr Rawat) was brave enough, he was fighting. He said 'I shall feel alright, I am vaccinated'," Dr Bhardwaj recounted his last exchange with the surgeon.
Many scientists see a glimmer of hope in the statistic: 8 percent missing their second dose means 92 percent returned, which is surprisingly high; even though most of those 8% died before their scheduled second dose.....!???
Now listen what came in front of us on 30.04.2024: